शिक्षा की दशा
शिक्षा की दशा हमारे देश में इतनी अच्छी नहीं है जितनी होनी चाहिए | लेकिन शहरों में निजी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर काफी सही है पर सरकारी स्कूलों मे छात्र -छात्राओ पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता है | गावों मे शिक्षा की हालत बहुत ही खराब है |
शिक्षा विभाग ने प्राइवेट स्कूलों की मान्यता के लिए जो मानक निर्धारित किए हैं उनके हिसाब से कमरों का साइज और संख्या तथा अध्यापकों की संख्या निर्धारित है। शायद ही किसी सरकारी स्कूल में ये मानक पूरे होते हों।अनेक सरकारी स्कूलों में पांच कक्षाओं पर दो कमरे और दो या तीन अध्यापक हैं। प्राइवेट स्कूलों के साथ ही सभी सरकारी स्कूलों में मानकों की पूर्ति सुनिश्चित किया जाये।
प्राइवेट स्कूलों के लिए भूमि भवन और सम्पत्ति के वही मानक रहें जो उसी पंचायत के सरकारी स्कूलों में उपलब्ध हैं । बेहतर होगा मानकों में शिक्षास्तर, परीक्षाफल, अध्यापकों की योग्यता को सम्मिलित किया जाए।
2004 की ग्लोबल एजुकेशन रिपोर्ट में विश्व के 127 देशों में भारत का स्थान 106वां है। यद्यपि भारत विश्व की 10 सबसे तेज विकास करने वाली शक्तियों में शुमार है किंतु अभी भी लगभग 40% लोग अशिक्षित या अल्प-शिक्षित हैं। स्वतंत्रता के 65 साल बीत जाने के बाद भी आज भारत के सामने गरीबों को शिक्षित करने की चुनौती बनी हुई है।साक्षरता और शिक्षा के मामले में भारत की गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है। अगर हम अपने देश की तुलना आसपास के देशों से करें तो चीन, श्रीलंका, म्यांमा, ईरान से भी पीछे हैं। हालांकि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का वादा संविधान में किया गया है। इसे दस साल में पूरा करने का लक्ष्य भी तय किया गया था। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। इसके लिए सरकार के पास धन नहीं था। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर किसी ठोस योजना की शुरुआत नहीं हो सकी। राज्यों के स्तर पर अलग-अलग प्रयास किए गए। स्वतंत्रता के बाद राज्य की गरिमा बढ़ाने के लिए कई राज्यों ने स्कूलों में उस राज्य की भाषा को शिक्षा का माध्यम चुना।
Comments
Post a Comment